नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार को प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि आगामी छह महीने के अदंर प्रदेश के सभी नगर पालिका क्षेत्रों में विद्युत या गैस आधारित शवदाह गृह का निर्माण करें। साथ ही इस मामले की प्रगति रिपोर्ट हर महीने अदालत में पेश करे।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में कोरोना महामारी से जुड़ी विभिन्न 20 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई। अदालत ने सभी जनहित याचिकाओं को अंतिम रूप से निस्तारित कर दिया। इनमें से एक याचिकाकर्ता ज्वालापुर (हरिद्वार) निवासी ईश्वर चन्द्र वर्मा की ओर से अदालत को बताया गया कि सरकार की ओर विद्युत शवदाह गृह लगाने के संदर्भ में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं। सरकार की ओर से जवाब में कहा गया है कि एक विद्युत शवदाह गृह लगाना काफी महंगा है।
अदालत ने सरकार के तर्क को अस्वीकार करते हुए छह माह के अंदर सभी नगर पालिका क्षेत्रों में एक विद्युत या गैस आधारित शवदाह गृह लगाने के निर्देश दिए। साथ ही इस मामले की प्रगति रिपोर्ट प्रत्येक माह अदालत में पेश करने को भी कहा। याचिकाकर्ता की ओर से पिछले साल एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई थी कि शवों का दाह संस्कार करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही है। श्मशान घाटों में शवों को आधा जलाकर कर छोड़ दिया जा रहा है। लकड़ी से दाह संस्कार करने में एक शव का 2500 से 3000 हजार रुपये का खर्च आता है। अधजले शवों को नदी में बहाने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। विद्युत शवदाह गृह लगने से समय और खर्चा कम लगता है।