हल्द्वानी एक्सप्रेस न्यूज़/नैनीताल। करीब 13000 करोड़ की लागत से बनने वाले प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकार को राहत देते हुए दोनों जनहित याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है। अदालत ने एक याचिका को खारिज कर दिया जबकि दूसरी याचिका को स्वीकार करते हुए प्रकरण को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में चुनौती देने को कहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई। इस प्रकरण को देहरादून निवासी रीनू पाल व हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया की ओर से चुनौती दी गयी है।
दोनों याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि केन्द्र सरकार की ओर से दिल्ली से देहरादून के बीच एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है। इस एक्सप्रेस-वे का तीन किमी का हिस्सा राजाजी नेशनल पार्क (आरटीआर) के ईको सेंसटिव जोन से गुजर रहा है और इस मार्ग के निर्माण के लिये 2500 से अधिक पेड़ों की बलि दी जा रही है। इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण से आरटीआर का 9.6 हेक्टेअर क्षेत्रफल भी घट जायेगा। याचिकाकर्ता पाल की ओर से अपनी याचिका में दून वैली के पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता पर सवाल उठाये गये और कहा गया कि एक्सप्रेव-वे के निर्माण के फलस्वरूप 2500 से अधिक पेड़ों के काटे जाने से दून वैली की जैव विविधता पर खासा असर पड़ेगा और एनजीटी की ओर से इन बिन्दुओं पर विचार नहीं किया गया है।
अदालत ने इसे गंभीरता से लिया और याचिकाकर्ता रीनू पाल की याचिका को खारिज कर दिया जबकि दूसरे याचिकाकर्ता को इस प्रकरण को एनजीटी के समक्ष चुनौती देने को कहा है। अदालत की ओर से अपने महत्वपूर्ण आदेश में देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता रीनू पाल के अधिवक्ता पर गंभीर टिप्पणी भी की गयी है।
गौरतलब है कि इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण से दिल्ली व देहरादून के बीच की दूरी मात्र ढाई घंटे में सिमट जायेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन विधानसभा चुनावों से पहले करना चाहते थे लेकिन उच्च न्यायालय में प्रकरण के लंबित होने के चलते इस पर काम शुरू नहीं हो सका है।
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