

एजेंसी/नैनीताल। उत्तराखंड सरकार प्रदेश में वन्य जीव संघर्ष पर लगाम लगाने के लिये गंभीर नहीं है। उच्च न्यायालय के आदेश के बाजवूद सरकार की ओर से मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिये आज तक विशेषज्ञ कमेटी का गठन नहीं किया गया है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए दो सप्ताह में कमेटी का गठन करने के साथ ही रिपोर्ट पेश करने को कहा है। अदालत ने इस मामले में विगत 17 अप्रैल को सुनवाई की लेकिन आदेश को सुरक्षित रख लिया जिसकी प्रति शुक्रवार को उपलब्ध हुई। पिछले साल 24 नवम्बर को अदालत ने एक आदेश जारी कर प्रदेश सरकार को वन्य जीव संघर्ष को रोकने के संदर्भ में एक विशेषज्ञों कमेटी गठित करने के निर्देश दिये थे।






अदालत ने कहा था कि कमेटी में उन लोगों को शामिल किया जाये जिन्होंने धरातल में काम किया हो। साथ ही कमेटी की संस्तुति पर आवश्यक कदम उठाने को कहा था। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि अभी तक कमेटी का गठन नहीं किया गया है। सरकार की ओर से इसके लिये दो सप्ताह के अतिरिक्त समय की मांग की गयी। अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए सरकार को दो सप्ताह का समय दे दिया। साथ ही निर्देश दिये कि यदि सरकार अदालत के आदेश का अनुपालन करने में अक्षम रहती है तो सचिव वन आरके सुधांशु आगामी 22 मई को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होंगे। गौरतलब है कि देहरादून निवासी अनु पंत की ओर पिछले साल एक याचिका दायर कर कहा गया कि प्रदेश में मानव वन्य जीव संघर्ष चरम पर है। अधिकांश पर्वतीय जिले इससे प्रभावित हैं। संघर्ष में हर साल 60 लोग जान गंवाते हैं। वर्ष 2020 में 30 लोग मारे गये थे जबकि 85 लोग घायल हो गये थे। इन घटनाओं से लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है और लोग पलायन को मजबूर हो रहे हैं।





