हल्द्वानी एक्सप्रेस न्यूज़/हल्द्वानी। दुनिया की कोई जगह कोई कोना ऐसा नही जहाँ मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिलाद का जश्न ना मनाया जाता हो उस पर पूरी उम्मत का अमल है। उसका इंकार करने वाला आलम-ए-इस्लाम और आलम-ए-अरब में आटे में नमक के बराबर भी नहीं। कुछ लोग समझते हैं कि सेलिब्रेशन इस्लाम की रिवायत नही है ये इलाकाई जुगराफियाई या हिंदुस्तान पाकिस्तान की रिवायती तहजीब है। इसको समझना बड़ा जरूरी है! ये बात दिमाग में रख लें कि किसी चीज को सेलिब्रेट करना उसकी याद मनाना और बार-बार मनाना ये इस्लाम के ऐन मुताबिक है।
5 वक्त की नमाज ये भी पैगम्बरों की याद मनाई जाती है। हदीस और सीरत की बड़ी-बड़ी किताबो में आया है और इमाम जलालुदीन सियूती ने खसाइसुल कुबरा में और इमाम तहावी ने शरह-मआनिअुल-आसार में और हदीस की दूसरी किताबो में आया है कि फजर की नमाज से हजरत आदम-अलैहिस्सलाम की याद मनाई जाती है। जब हजरत आदम की तौबा कुबूल हुई तो फजर का वक्त था। आपने तौबा के कुबूल होने पर शुक्राने की 2 रकत नमाज नफ्ल अदा की, उस दो रकात शुक्राने की याद मनाना फजर की नमाज के 2 फर्ज बन गये तो नमाज-ए-फर्ज आदम की कुबूल-ए-तौबा का सैलिब्रेशन है।
जुहर की नमाज हजरते इब्राहिम-अलैहिस्सलाम का सेलिब्रेशन है। हदीस की किताबो में आया है कि जब हजरत इसहाक-अलैहिस्सलाम उनकी दुआ के नतीजे मे पैदा हुये तो जुहर का वक्त था तो हजरत इब्राहीम ने 4 रक्त नमाज शुक्राने के तौर पर पढ़ी वो नमाज-ए-शुक्राना उम्मते मुहम्मद के लिये जुहर की नमाज बन गई। तो जुहर की नमाज हजरत इसहाक की मीलाद व पैदाईश की यादगार है।
असर की नमाज हजरत उजैर-अलैहिस्सलाम की यादगार है।
हजर उजैर-अलैहिस्सलाम को 100 साल तक लोगो की निगाहों से पौशीदा रखा और 100 साल की वफात के बाद दोबारा जिन्दा हुए तो 4 रकात नमाज नफिल शुक्राने के तौर पर पढ़ी। वो उम्मते मुहम्मद के लिये नमाज-ए-अस्र बन गई। तो असर की नमाज हजरत-ए-उजैर का सैलिब्रेशन है।
हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम लम्बी बीमारी के बाद कमजोर हो गये थे, उन्होने 4 रकत नमाज नफिल शुक्राने के अदा किये। मगरिब का वक्त था, 3 रकात पढ़ी थी चैथी के लिये उठने की कोशिश की बीमारी और कमजोरी की वजह से ना उठ सके, खुदा ने कहा कि यह 3 रकात मगरिब की नमाज उम्मत-ए-मुहम्मद के लिये फर्ज बन गई है, तो यह मगरिब की नमाज हजरत अय्यूब का सैलिब्रेशन है।
हजरत यूनुस-अलैहिस्सलाम 40 दिन तक मछली के पेट मे रहे 40 दिन के बाद मछली के पेट से निकले तो 4 रकत नमाज बतौर-ए-शुक्राना अदा की। यह उम्मत-ए-मुहम्मद के लिये इशा की नमाज बन गई, तो यह ईशा की नमाज हजरत युनुस का सैलिब्रेशन है।
याद रहे नमाज से बढ़कर अल्लाह की कोई इबादत नही है। पाँचों नमाजो को किसी ना किसी नबी से जोड़ रखा है, नमाज नबी के साथ जुड़ी तो उम्मत-ए-मुस्तफा का फर्ज बन गई। तों यह पाँच वक्त की नमाज नबियो के शुक्रियों का सैलिब्रेशन है और हर मुसलमान दिन मे पाँच बार नबियो को सैलिब्रेट करता है।
इसी तरह हज के अरकान सब के सब नबियो की यादगार है, हज के दिनों मे हज के अरकान अदा करने के लिये दुनिया के हर मुल्क का बड़े से बड़ा बादशाह कीमती लिबास पहनकर आता है, खुदा का हुक्म होता है कि पूरा कीमती लिबास उतार दो सिर्फ बे-सिली दो चादरे ओढ़़ लो इसलिये कि हजरत इब्राहीम का लिबास दो चादरें ही था, तो हज का लिबास हजरत इब्राहीम का सैलिब्रेशन है।
ख्वाजा मस्जिद
किदवई नगर हल्द्वानी
फिर काबा के हरम मे दाखिल हो तो तलबिया पढ़ो, यह तलबिया क्या है? जब हजरत इब्राहीम व इस्माईल ने खाना-ए-काबा की तामीर मुकम्मल की तो रब का हुक्म हुआ कि ए-इब्राहीम जबले-अबु-कुबैस पहाड़ी पर चढ़कर लोगो को बुलाओ। रब का फरमान सुनकर पहाड़ी पर चढ़कर आवाज लगाई लोगो अल्लाह तुम्हे अपने घर के हज का हुक्म देता है तो जो लोग दुनिया में थे और जो माँओं के पैटों मे थे और कयामत तक दुनिया में आने वाली रूहें थीं सबने कहा था लब्बैक-अल्लाहुम्मा-लब्बैक तो यह तल्बिया भी हजरत इब्राहीम के जवाब का सैलिब्रेशन है।
हजरे-असवद जो काबा के सहन मे लगा है हुजूर ने और सहाबा ने उस पत्थर को चूमा है तो उस पत्थर को चूमना हुजूर और सहाबा का सैलिब्रेशन है।
मकामे इब्राहीम जहां खड़े होकर नफिल पढ़ते हैं और दुआएं कुबूल होती हैं यह वो पत्थर है जिसपर खड़े होकर हजरत इब्राहीम ने काबे की तामीर की थी, जितनी दीवार उठती जाती, पत्थर खुद-ब-खुद उतना ही ऊँचा होता जाता। यहां तक कि आपके पैरो के निशान पत्थर पर बैठ गये थे। काबा शरीफ से सारे पत्थर निकाल दिए गये सिर्फ एक पत्थर गाड़ दिया गया उसी का नाम मकामे इब्राहीम है।
तो सुनलो? नबियों के कदमों के निशान से भागने वालो अल्लाह वालों के कदमों के निशान से भागने वालों हर जगह से भाग गये, मगर जब काबे के सहन मे पहुंचे तो खुदा ने पकड़ लिया और फरमाया! मेरे पैगम्बर के कदमों के निशान सामने रखो और नफिल पढ़ो हजरत इब्राहीम के हजारों पत्थरों पर कदम लगे होंगे मगर किसी पत्थर पर आपके कदम के निशान ना पड़े, उसी पत्थर पर क्यो पड़े? इसलिये कि उस पत्थर पर खड़े होकर मिलादे मुस्तफा कि दुआ की गई थी। तुम्हारा हज ना होगा जब तक यादगारे मुस्तफा को सामने रखकर नफिल नमाज ना पढ़ लो यह मैने इसलिये बताया कि इस्लाम में किस तरह सैलिब्रेशन का तसव्वुर है।
निसार तेरी चहल-पहल पर हजारों ईदें रबीउल अव्वल
सिवाए इबलीस के जहाॅ में सभी तो खुशियां मना रहे है!
अपीलः- अभी कोविड-19 खत्म नही हुआ है! इसलिये उत्तराखण्ड सरकार की तरफ से यह गाईडलाईन आई है कि जुलूस की 100 प्रतिशत अनुमति की जगह 50 प्रतिशत अनुमति ही मिली है, जिसमें भी यह शर्तें हैं कि 12 साल से कम उम्र के बच्चे व 60 साल से ज्यादा उम्र के बुर्जुग जुलूस मे हरगिज शामिल ना हों। तथा जुलूस मे साफ सफाई का खास ख्याल रखें और मास्क लगाकर रहें एवं सैनिटाईजर का प्रयोग करते रहें और जुलूस के बीच-बीच मे गैपिंग ना रखें। जुलूस में किसी भी प्रकार के वाहन को लेकर ना आयें क्योंकि पुलिस प्रशासन द्वारा चेतावनी दी गई है कि यदि कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार के वाहन में दिखाई देता है तो उसके वाहन को सीज किया जाएगा, जुलूस कमैटी वाहन के सीज होने की जिम्मेदार नही होगी।’
मुफ्ती सलीम मिस्बाही
ख्वाजा मस्जिद
किदवई नगर हल्द्वानी
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