हल्द्वानी एक्सप्रेस न्यूज़। हमारी आंखें बहुत नाजु़क और सेंसिटिव होती हैं। इसलिए हर किसी को अपनी आंखों का ख्याल रखना चाहिए। यदि आपके घर बच्चे हैं तो आपको उनकी आंखों का भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। आज-कल अधिक फोन चलाने व ऑनलाइन क्लास की वजह से बच्चों की आंखों पर अधिक प्रभाव पड़ रहा है। जिस कारण उनकी आंखें कमजोर होती जा रही हैं। इसलिए आपको अपने बच्चों की आंखों से सम्बन्धित किसी भी लक्षण को अनदेखा नहीं करना चाहिए और साल में एक बार बच्चों की आंखों की जांच अवश्य कराना चाहिए।
बच्चों की आंखों की देखभाल
नवजात शिशु
बच्चे के जन्म के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले ही उसकी आंखों की जांच किसी नेत्र विषेशज्ञ से करा लेनी चाहिए। इससे कोई जन्मजात समस्या हो तो पकड़ में आ सकती है। नवजात शिशु की आंखों में किसी तरह की समस्या जैसे पलकों में सूजन, आंखों से पानी आना, आंसुओं की नली का बंद होना आदि का सही समय पर उपचार के द्वारा ठीक किया जा सकता है। कम वनज वाले और समय से पहले पैदा हुए बच्चों की आंखों की नियमित रूप से जांच कराएं।
छोटे बच्चे
अगर किसी कारण वश आप अपने नवजात शिशु की आंखों की जांच नहीं करा पाएं हों तो बच्चे को स्कूल भेजने से पहले आंखों की जांच करा लें। बच्चे की नजर कमजोर है तो उसे सही नंबर का चश्मा पहनाएं बहुत जरूरी है कि बचपन में बच्चों की आंखों का विशेष ध्यान रखा जाए। अगर बच्चों की आंखें कमजोर होंगी तो उनके सीखने की क्षमता और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
किशोर/टीन-एजर्स
आज-कल किशोर उम्र के बच्चों पर एक तो पढ़ाई का बहुत दबाव है, दूसरा गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण उनकी आंखों पर ‘डिजिटल स्ट्रेस’ काफी बढ़ रहा है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता-पिता उन्हें आंखों की देखभाल करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें समझाएं कि पोषक भोजन, पर्याप्त आराम और गैजेट्स का सीमित इस्तेमाल आंखों को स्वस्थ रखने और बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी बनाए रखने के लिए कितना जरूरी है। बच्चों में आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं
बच्चों में आंखों से संबंधित कईं प्रकार की समस्याएं होती हैं, लेकिन कुछ समस्याएं बहुत सामान्य हैं जिनका आसानी से उपचार संभव है।
निकट दृष्टिदोष (मायोपिया)
निकट दृष्टिदोष में कार्निया और लेंस, रेटिना पर ठीक तरह से फोकस नहीं बना पाते हैं। ऐसे बच्चों की पास की दृश्टि स्पश्ट होती है, लेकिन उन्हें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं। यह समस्या तब होती है जब आंखों की पुतली थोड़ी लंबी हो जाती है या लेंस बहुत मोटा हो जाता है, जिससे इमेज रेटिना पर बनने के बजाय उसके सामने बनने लगती है। इस समस्या को माइनस नंबर का चश्मा पहनकर ठीक किया जा सकता है।
दूर दृष्टिदोष (हाइपरमेट्रोपिया)
दूर दृष्टिदोष से पीड़ित बच्चों को दूर को तो साफ दिखाई देता है, लेकिन पास की वस्तुओं पर उनका स्पष्ट फोकस नहीं बन पाता है। यह तब होता है जब आंखों की पुतली बहुत छोटी हो जाती है या लेंस बहुत पतला हो जाता है, इससे इमेज रेटिना के पीछे बनने लगती है। वैसे यह समस्या छोटे बच्चों में बहुत कम होती है, इसमें प्लस नंबर का चश्मा पहनना पड़ता है।
एम्बलायोपिया
एम्बलायोपिया को ‘लेजी आई’ भी कहते हैं। यह एक विज़न डिवलपमेंट डिसआॅर्डर है, जिसमें आंखों में देखने की सामान्य क्षमता विकसित नहीं हो पाती है। चश्मे या कांटेक्ट लेंस का इस्तेमाल करने पर भी दृष्टि सामान्य नहीं हो पाती है। एम्बलायोपिया, नवजात शिशुओं में या बहुत छोटी उम्र के बच्चों में शुरू हो जाती है। अधिकतर बच्चों में यह समस्या एक आंख में होती है। इसका उपचार आठ वर्ष से पहले करा लेना चाहिए, नहीं तो बच्चे की आंखों को स्थायी क्षति पहुंच सकती है।
स्ट्राबिस्मस
स्ट्राबिस्मस, आंखों से संबंधित एक समस्या है, जिसमें किसी वस्तु को देखते समय आंखों का अलाइनमेंट ठीक नहीं होता है। अगर समय रहते इसका पता चल जाए तो सर्जरी या विशेष रूप से डिजाइन किए चश्मों से इसे ठीक किया जा सकता है।
ल्युकोकोरिया (व्हाइट पुपिल)
कईं नवजात शिशुओं की आंखों की पुतलियां सफेद दिखाई देती हैं। यह इस कारण होता है कि कुछ बच्चे जन्मजात मोतियाबिंद के षिकार होते हैं। मोतियाबिंद में आंखों का प्रकृतिक लेंस क्लाउडी हो जाता है। ल्युकोकोरिया में तुरंत सर्जरी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन समय रहते सर्जरी कराने से आंखों को स्थायी नुकसान पहुंचने से बचा जा सकता है। पुतलियों के सफेद होने का एक कारण आई कैंसर, भी हो सकता है, लेकिन इसके मामले कम देखे जाते हैं। इस कैंसर को रेटिनोब्लास्टोमा कहते हैं, क्योंकि ये रेटिना में विकसित होता है।
नज़र अंदाज़ न करें इन संकेतों को
बच्चे छोटे होते हैं, उस उम्र तक उनकी समझ विकसित नहीं हो पाती है, इसलिए यह माता-पिता का कर्तव्य है कि अपने बच्चों का ध्यान रखें। अगर बच्चों में निम्न में से कोई भी लक्षण दिखाई दें तो तुरंत नेत्र रोग विषेशज्ञ से जांच कराएं।
- अगर आपका बच्चा आंखों को चुंदी या स्क्विंट करके देख रहा है।
- ज़ोर-ज़ोर से और बार-बार आंख रगड़ता हो।
- एक आंख को बंद करता हो या पढ़ते या टीवी देखते समय सिर एक ओर झुका लेता हो।
- टीवी, कम्प्युटर या मोबाइल की स्क्रीन को बहुत पास से देखता हो।
- किताबों को अपनी आंखों के बहुत पास लाकर पढ़ता हो।
- लगातार कई दिनों से आंखों और सिर में दर्द रह रहा हो।
- बार-बार या सामान्य से अधिक पलकें झपकाने की समस्या हो।
सुरक्षात्मक उपाय
- बच्चों को नुकीली और कड़ी चीजों अथवा खिलौनों से दूर रखें।
- उन्हें धूल, मिट्टी और तेज धूप में न खेलने दें।
- बच्चों को काजल या सुरमा बिल्कुल न लगाएं; इनमें कार्बन के कण होते हैं जिससे कार्निया और कंजक्टाइवा पर खरोंच आ सकती है।
- बच्चों में छोटी उम्र से ही हाथ धोने की आदत डालें; गंदे हाथों से आंखों को रगड़ने या खुजलाने से एलर्जी या संक्रमण हो सकता है।
- आंखों को स्वस्थ और सामान्य रखने के लिए जरूरी टिप्स
बच्चों की आंखों को स्वस्थ और सामान्य बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है:-
- बच्चों को गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल न करने दें। बच्चों की आंखें नाजुक होती हैं, स्क्रीन को अधिक समय तक घूरने से उनकी आंखों को स्थायी रूप से
नुकसान पहुंच सकता है। - उन्हें संतुलित और पोषक भोजन खाने की आदत डालें, ताकि उनकी आंखों का विकास उचित रूप से हो सके।
- बच्चों को प्रतिदिन 6-8 गिलास पानी-पीने के लिए प्रेरित करें, पानी आंखों में नमी और ताज़गी बनाए रखता है।
- बच्चों को पूरी नींद लेने दें, उनके सोने और उठने का एक समय निर्धारित कर दें।
- बच्चों को झुककर या लेटकर न पढ़ने दें, हमेशा टेबल-कुर्सी का इस्तेमाल करने के लिए कहें।
- उन्हें देर रात तक कृत्रिम रोशनी में न पढ़ने दें।
- पढ़ते समय किताबों को कम से कम एक फीट की दूरी पर रखने के लिए कहें।
- बच्चों को हमेशा घर में कैद करके न रखें, उन्हें प्रकृतिक प्रकाश में समय बिताने दें।
- आंखों की नियमित रूप से जांच कराएं, अगर कोई समस्या हो उपचार कराने में देरी न करें।
डाॅ0 मनुबंसल (वरिष्ठ चिकित्सक)
आई0क्यू0 हाॅस्पिटल हल्द्वानी।
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