- छह बार के विधायक आर्य कांग्रेसी रंग में रंगे, एक बार फिर से दल बदल का दौर पकड़ने लगा तेजी
हल्द्वानी एक्सप्रेस न्यूज़/देहरादून/नयी दिल्ली। उत्तराखंड में भाजपा व कांग्रेस के बीच सियासती नेताओं की अदला-बदली को लेकर जो नूराकुश्ती 2016 से चल रही है। वह अभी भी जारी है। अधिकतर मौके पर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर हावी रही है। हालाकि कांग्रेस आये दिन भाजपा में सेंध लगाने का दावा करती आयी है लेकिन उसे पहले बार सफलता मिली और भाजपा के दिग्गजों में शुमार यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव को कांग्रेस में शामिल कराकर जैसे को तैसे वाली नीति पर कार्य किया है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार में कई अहम विभागों के मंत्री एवं बाजपुर से विधायक यशपाल आर्य ने अपने पुत्र एवं नैनीताल विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विधायक संजीव के साथ सोमवार को नयी दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। दोनों पिता-पुत्र के कांग्रेस में शामिल होने से खुशी का माहौल है। इससे भाजपा को करार झटका लगा है। इससे पहले भाजपा ने कांग्रेस के दलित विधायक राजकुमार और निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस पर बढ़त बना ला थी। कांग्रेस के इस राजनीतिक दांव से उत्तराखंड के राजनैतिक फलक की स्थिति बदल गयी है।
विदित हो कियशपाल पूर्व में वर्ष 2002 से 2007 तक कांग्रेस सरकार में विधायक निर्वाचित होने के बाद विधानसभा अध्यक्ष बने। वर्ष 2007 में वह फिर विधायक निर्वाचित हुये और कैबिनेट मंत्री बने। वर्ष 2016 में अपनी ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर वह अन्य 09 विधायक के साथ भाजपा में शामिल हो गये।
सियासी जानकारों के अनुसार, आर्य पिछले लंबे समय से अपनी ही सरकार से नाखुश थे। बीते 25 सितम्बर को उनकी नाराजगी के कारण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनके घर गये। इसके बावजूद आर्य को समझाने में भाजपा के रणनीतिकारों को कोई सफलता नहीं मिली।
सोमवार को दिल्ली में कांग्रेस राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की मौजूदगी में प्रेस वार्ता में यशपाल और संजीव आर्य ने पार्टी में वापसी की। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी मौजूद रहे।
छह बार रह चुके हैं यशपाल विधायक
यशपाल आर्य अविभाजित यूपी के दौरान से ही विधायक रह चुके हैं। वे 1989, 1996, 2002, 2007, 2012, 2017 में विधायक रह चुके हैं। वहीं 2017 में उनके बेटे संजीव आर्य नैनीताल के विधायक चुने जा चुके हैं।
2022 में दलित चेहरे को मिल सकती है अहमियत
राज्य में दलित मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। इन पर दोनों दलों की नजर रहती है। इधर हालिया दिनों में कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी दलित सीएम के चेहरे की बात कही थी। दोनों दलो में दलित चेहरों की कमी होने से भी यशपाल आर्य का पलड़ा भारी साबित हो सकता है। इधर कांग्रेस में प्रदीप टम्टा आदि ही मुख्य चेहरा हैं वहीं भाजपा में अजय टम्टा व रेखा आर्या इस कमी की भरपाई करने में लगे हैं।
आने-वाले दिनों में दल बदल में हो सकता है इजाफा
चुनावों का देखते हुए आने वाले दिनों में दलबदल में भी और इजाफा होने की संभावना है। सियासी जानकारों के अनुसार अनेक नेता ऐसे हैं जो इशारा मिलते ही अपनी निष्ठा और दल बदल करने को तैयार हैं।
आर्य के अनुभव का लाभ पार्टी को मिलेगाः निजामुद्दीन
मुख्य प्रवक्ता व राष्ट्रीय सचिव एवं मंगलौर के विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि यशपाल के अनुभव का लाभ निश्चित रूप से पार्टी को मिलेगा। उनका विशद सियासी अनुभव राज्य में पार्टी के हित में होगा। उन्होंने कहा कि वे भाजपा की नीतियों से तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे। वे राज्य के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष, काबीना मंत्री के साथ कांग्रेस के अहम पदों पर रह चुके हैं।
वहीं राज्य में हड़ताल आदि के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि ये सरकार की विफलता ही कहा जायेगा। महंगाई, बेरोजगारी से जनता त्रस्त है कोरोना काल के दौरान सरकारी कर्मचारियों/संविदा/उपनल कर्मियां को घोषित भत्ता व अनय प्रोत्साहन राशि नहीं दी गयी।
मुख्य प्रवक्ता व राष्ट्रीय सचिव एवं मंगलौर विधायक
इधर राज्य में कैबिनेट मंत्री अपने आप को असहज महसूस कर रह हैं और खुद कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत खुद धरने पर बैठ चुके हैं। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में लालफीताशाही हावी है।
वहीं आगामी चुनावों में भाजपा की नीतियों और बार-बार सीएम बदलने से भी जनता परेशान है। कांग्रेस अपनी नीतियों पर चुनाव लड़ती है और आगामी चुनावों में भी जनता हमारी नीतियों पर विश्वास करते हुए कांग्रेस को चुनेगी।
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