एजेंसी/नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्लास्टिक कचरे के मामले में बेहद गंभीर रुख अख्तियार करते हुए पूर्व आदेशों का पालन नहीं करने पर राज्य के सभी प्रभागीय वन अधिकारियों (डीएफओ) पर दस-दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है और पर्यावरण सचिव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के सदस्य सचिव और गढ़वाल व कुमाऊँ आयुक्त को आगामी 15 दिसम्बर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने के निर्देश दिए हैं।अदालत ने यह भी कहा है कि आदेशों का पालन नहीं करने पर क्यों नही आपके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही अमल में लायी जाये। अदालत ने वन विभाग के सचिव की ओर से शपथपत्र पेश नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की साथ ही सभी डीएफओ पर 10-10 हजार का जुर्माना भी लगाया है। साथ ही धनराशि को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने को कहा है। अदालत ने सभी डीएफओ की सूची भी अदालत में पेश करने को कहा है।
अदालत ने होटलों, मॉल तथा पार्टी व्यवसायियों को निर्देश दिए कि वे अपना कचरा खुद रिसाइक्लिंग प्लांट तक ले जाएं। साथ ही शहरी विकास विभाग और पंचायती राज विभाग के निदेशक को इसे लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है और रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है। अदालत ने प्रमुख सचिव को यह भी निर्देश दिए कि वे पीसीबी के साथ मिलकर प्रदेश में आने वाले प्लास्टिक बंद वस्तुओं का आकलन कर रिपोर्ट पेश करें। साथ ही सभी जिलाधिकारियों को भी अपने जिले की प्लास्टिक पैकेजिंग वस्तुएं की सूची अदालत में पेश करने के निर्देश दिए।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में कोर्ट ने सभी प्रभागीय वनाधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वे ग्राम स्तर तक कूड़े का निस्तारण कैसे करे और ग्राम पंचायतों के नक्शे आदि पोर्टल पर अपलोड करने को कहा था। प्लास्टिक में बंद वस्तुओं को बेचने वाले कम्पनियों को निर्देश दिए थे कि वे अपना कचरा 15 दिन के भीतर स्वयं ले जाएं या उसके बदले नगर निगम, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों व अन्य निकायों को मुआवजा का भुगतान करें। ऐसा नहीं करने पर सामान के आयात पर प्रतिबंध लगाने को कहा था लेकिन उपरोक्त निर्देशों पर कोई कदम नहीं उठाया गया है। अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में प्लास्टिक के उपयोग व उसके निस्तारण के लिए नियमावली बनाई थी परन्तु उनका पालन नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2018 में केंद्र सरकार की ओर से भी प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे जिसमे उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व बिक्रेताओ को जिम्मेदारी तय की गयी थी लेकिन उत्तराखंड में इन सबका उल्लंघन किया जा रहा है।