
हल्द्वानी। 38वें राष्ट्रीय खेलों के फुटबॉल फाइनल में भले ही उत्तराखंड की टीम ट्रॉफी नहीं उठा सकी, लेकिन उन्होंने खेल प्रेमियों का दिल जरूर जीत लिया। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम, गौला पार में जब हजारों की संख्या में मौजूद दर्शकों ने अपनी टीम को हौसला देते हुए देखा, तो हर किसी की आंखों में उम्मीद की चमक थी। मगर किस्मत ने इस बार साथ नहीं दिया और केरल ने 1-0 से जीत दर्ज कर ली। मैच की शुरुआत से ही उत्तराखंड की टीम ने शानदार खेल दिखाया। हर पास, हर डिफेंस, हर मूव में जीतने का जज़्बा झलक रहा था। खिलाड़ियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन किस्मत कुछ और ही चाहती थी। जब केरल ने गोल किया, तो पूरा स्टेडियम सन्न रह गया। बावजूद इसके, उत्तराखंड की टीम आखिरी मिनट तक लड़ती रही।
हार के बाद मैदान में बैठे खिलाड़ियों की आंखों में आंसू थे, लेकिन स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शकों ने तालियों की गूंज से उन्हें सम्मान दिया। खेल सिर्फ जीत-हार का नाम नहीं, जज़्बे और जुनून की पहचान भी है, और उत्तराखंड की टीम ने यह साबित कर दिया। भले ही स्कोरबोर्ड पर केरल विजेता बना, लेकिन असली जीत उत्तराखंड के उन जुझारू खिलाड़ियों की हुई, जिन्होंने अपनी मिट्टी और अपने सपनों के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।यह हार एक नई शुरुआत है। उत्तराखंड की टीम ने यह जता दिया कि भविष्य में वे सिर्फ फाइनल ही नहीं, बल्कि खिताब भी जीतकर दिखाएंगे। खिलाड़ियों के चेहरे पर गम था, लेकिन दिलों में अगली बार बेहतर करने का संकल्प भी था। जब वे मैदान से बाहर निकले, तो लोगों ने खड़े होकर तालियों से उनका हौसला बढ़ाया। आज भले ही ट्रॉफी उत्तराखंड के हाथ से निकल गई, लेकिन खिलाड़ियों की मेहनत, जज़्बा और जुनून ने हर उत्तराखंडी का दिल जीत लिया। यह सिर्फ एक मैच नहीं, बल्कि इतिहास में दर्ज एक ऐसी कहानी थी, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।