हल्द्वानी एक्सप्रेस न्यूज़/देहरादून। उत्तराखण्ड में पांचवीं विधानसभा गठन के लिये हुये आम चुनावों के परिणाम गुरुवार को आने के बाद यह साफ हो गया कि यहां निवर्तमान अथवा पूर्व मुख्यमंत्री दुबारा चुनाव नहीं जीतते। आज निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खटीमा से चुनाव हारने के बाद इस मिथक को बहुत बल मिला है।
वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद पहली विधानसभा के लिये 2002 में चुनाव हुए। जिसमें तत्कालीन अंतरिम सरकार में दूसरे मुख्यमंत्री बने भगत सिंह कोश्यारी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कांग्रेस द्वारा शिकस्त मिलने के कारण सत्ता से बाहर होना पड़ा। लेकिन श्री कोश्यारी ने चुनाव जीता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। वर्ष 2007 में हुये द्वितीय विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चुनाव जीतकर भुवन चन्द खण्डूरी को मुख्यमंत्री बनाया। एक राजनीतिक घटनाक्रम में लगभग दो साल बाद, उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को इस पद पर आसीन किया गया। पांच वर्ष के अंदर ही फिर श्री खण्डूरी मुख्यमंत्री बनाये गये। साथ ही, वर्ष 2012 के तीसरी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ‘खण्डूरी है जरूरी’ नारे के साथ जब चुनाव लड़ा तो श्री खण्डूरी खुद कोटद्वार से चुनाव हार गये। साथ ही, पार्टी सरकार भी नहीं बना सकी।
इसके बाद वर्ष 2012 में कांग्रेस की सरकार बनने पर, जब हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया और वर्ष 2017 में उन्होंने हरिद्वार और सितारगंज से चुनाव लड़ा तो वह दोनों जगह से हार गये। साथ ही, उनकी पार्टी मात्र 11 सीट ही हासिल कर सकी। तब सत्तासीन हुई वर्तमान भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री मनाए गये पुष्कर सिंह धामी भी आज चुनाव हार गये। इतना ही नहीं, कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी चुनाव हार गये। इससे इन मिथकों को बहुत बल मिलता है कि मुख्यमंत्री रहते हुये अथवा पूर्व मुख्यमंत्री रहा नेता इस देवभूमि उत्तराखंड में चुनाव नहीं जीत सकता।
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