नैनीताल। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण के मामले में शुक्रवार को अतिक्रमणकारियों को एक बार फिर निराशा हाथ लगी। उच्च न्यायालय ने अतिक्रमणकारी शमीम बानो की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता के घर में घुसकर धमकी देने के मामले को बेहद गंभीरता से लिया और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) पंकज भट्ट को पूरे प्रकरण की जांच कर दो सप्ताह में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये हैं।न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में बनभूलपुरा अतिक्रमण के मामले में आज दो मामलों पर सुनवाई हुई। पहले मामले में याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी की ओर से अदालत में प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया गया कि विगत 01 जुलाई को चार अज्ञात लोग गौलापार स्थित उसके घर में आ धमके और उन्हें धमकी देते हुए जनहित याचिका वापस लेने की मांग की।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उस समय वह घर पर मौजूद नहीं थे। घर पर उसकी वृद्ध मां और पत्नी व तीन साल की बेटी मौजूद थीं। इस घटना के बाद परिजन भयभीत हैं। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि एक जुलाई को ही बनभूलपुरा की बस्ती बचाओ संघर्ष समिति ने अगले दिन दो जुलाई को याचिकाकर्ता के घर का घेराव करने की घोषणा प्रेस के माध्यम से की थी। अदालत ने इस प्रकरण को बेहद गंभीरता से लिया और आरोपियों को साफ साफ सलाखों के पीछे डालने की बात कही।अदालत ने यह भी कहा कि जनहित याचिका अब अदालत के अधिकार क्षेत्र में है और यदि याचिकाकर्ता नाम हटा भी लें तो अदालत इस मामले का स्वतः संज्ञान ले सकती है। अदालत ने आगे कहा कि यदि ऐसा ही रवैया रहा तो अदालत याचिकाकर्ता को स्वयं इस मामले से बाहर कर प्रकरण का स्वतः संज्ञान लेगी। तब अदालत को धमकी देकर दिखाओ?
दूसरी ओर सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत अदालत में पेश हुए और उन्होंने याचिकाकर्ता व उसके परिवार की सुरक्षा की गारंटी दी। अदालत ने सीएससी की बात को रिकार्ड में दर्ज कर लिया। अंत में अदालत ने एसएसपी को मामले की पूरी जांच कर दो सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है। इस प्रकरण में फिर दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी। इसके अलावा इसी प्रकरण में दायर शमीम बानो की याचिका को अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद आज खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि निचली अदालत की ओर से उन्हें अंतरिम राहत नहीं दी गयी है। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से कई दलीलें पेश की गयीं लेकिन काफी देर हुई सुनवाई के बाद भी याचिकाकर्ता को राहत नहीं नहीं मिली और अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।
यहां बता दें कि रवि शंकर जोशी की जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 में रेलवे की 29 एकड़ सरकारी भूमि पर से 4365 अतिक्रमकारियों को पीपी एक्ट का पालन करते हुए 10 सप्ताह के अदंर हटाने के निर्देश दिये थे। अतिक्रमणकारी इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंच गये लेकिन वहां उन्हें राहत नहीं मिली और शीर्ष अदालत ने उन्हें उच्च न्यायालय की शरण में जाने को कहा। इसके बाद मामला कुछ दिन शांत रहा। इस साल श्री जोशी की ओर से पुनः इस मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया। अदालत ने इस मामले को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था लेकिन लगातार अतिक्रमणकारी अदालत का दरवाजा खटखटाने लगे।इसके बाद अदालत ने सभी अतिक्रमणकारियों को एक और मौका देते हुए दो सप्ताह के अदंर अदालत में अपना दावा प्रस्तुत करने को कहा लेकिन कुछ मुट्ठी भर अतिक्रमणकारी ही अदालत पहुंच पाए।