- रोज़े की फ़ज़ीलत, नफ़्ल इबादत और क़ुरआन की तिलावत से मिलेगा बेपनाह सवाब
हल्द्वानी। रमज़ान का पाक महीना शुरू होते ही शहर की मस्जिदों में रौनक बढ़ गई है। रोज़ेदारों के लिए ये महीना बरकतों और रहमतों से भरा होता है, जिसमें हर नेक अमल का कई गुना सवाब मिलता है। सुबह सेहरी से लेकर शाम इफ्तार तक रोज़ेदार हर तरह की बुरी आदतों से दूर रहते हुए अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं। शहर की जामा मस्जिद के इमाम शेख मुफ़्ती मुहम्मद आज़म कादरी ने रमज़ान की अहमियत बताते हुए कहा कि ये महीना तीन अशरों में तक्सीम होता है। पहला अशरा रहमत का होता है, जिसमें अल्लाह की रहमत बंदों पर बरसती है। दूसरा अशरा मग़फिरत का होता है, जिसमें अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी जाती है। आखिरी अशरा जहन्नुम से निजात पाने का होता है, जिसमें अल्लाह अपने नेक बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है और उन पर अपनी रहमत नाज़िल करता है।

रमज़ान में रोज़े की अहमियत बताते हुए उन्होंने कहा कि रोज़ा सिर्फ़ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि ये अपने नफ़्स पर काबू पाने और अल्लाह की इबादत में वक्त बिताने का जरिया है। जो शख़्स इस महीने में नफ़्ल इबादत करता है, उसे फ़र्ज़ इबादत का सवाब मिलता है, और जो फ़र्ज़ अदा करता है, उसे सत्तर गुना सवाब नसीब होता है। क़यामत के रोज़ रोज़ेदारों के लिए जन्नत में सोने के दस्तरख़ान बिछाए जाएंगे और उनकी इज्ज़त अफ़ज़ाई की जाएगी। इमाम साहब ने रोज़ेदारों से गुज़ारिश की कि इस मुक़द्दस महीने में ज्यादा से ज्यादा क़ुरआन की तिलावत करें, अल्लाह की बारगाह में तौबा करें, गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करें। उन्होंने नौजवानों को हिदायत दी कि रातों को फिज़ूल इधर-उधर न घूमें, खेल-कूद में वक्त ज़ाया न करें और किसी ऐसे काम से बचें जिससे दूसरों को तकलीफ़ पहुंचे।
रोज़े के आदाब और एहतियात
रोज़े के दौरान इंजेक्शन लगवाना और खून की जांच कराना जायज़ है, इससे रोज़े में कोई ख़लल नहीं पड़ता। ज़रूरतमंद को रक्तदान भी किया जा सकता है। अगर किसी को खुद-ब-खुद उल्टी आ जाए तो रोज़ा नहीं टूटता, लेकिन जानबूझकर उल्टी करने से रोज़ा टूट जाता है। मिस्वाक करना सुन्नत है, और इसे रोज़े की हालत में भी किया जा सकता है। अगर कोई सहरी में बेदार न हो सके, तो भी उसका रोज़ा मुकम्मल होगा, क्योंकि सहरी रोज़े के लिए जरूरी नहीं, लेकिन सुन्नत ज़रूर है। रोज़ेदारों को इनहेलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, धूम्रपान पूरी तरह ममनूआ है। आंखों में सुरमा लगाने में कोई हर्ज नहीं। इमाम साहब ने कहा कि रोज़ा सिर्फ़ जिस्मानी भूख-प्यास सहने का नाम नहीं, बल्कि दिल और रूह की पाकीज़गी का महीना है। इस महीने में अपनी नीयत को साफ़ रखकर अल्लाह की रहमत और मग़फिरत की तलब करें ताकि हम सब के गुनाह माफ़ हो जाएं और अल्लाह हम पर अपनी रहमत नाज़िल करे।






