एजेंसी/नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच), राज्य मार्ग के किनारे वन भूमि और सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाये जाने के खिलाफ अदालत पहुंचे तीन याचिकाकर्ताओं को मंगलवार को कोई राहत नहीं दी। अदालत ने प्रशासन को उनके प्रत्यावेदन पर रोड साइड कंट्रोल एक्ट के तहत कार्यवाही करने के निर्देश दिये। दरअसल मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ ने पिछले महीने 26 अगस्त को एक आदेश जारी कर प्रदेश भर में एनएच, राज्यमार्गों के साथ ही सड़कों के किनारे वन भूमि और सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने के साफ साफ निर्देश सभी जिलाधिकारियों को दिये थे। अदालत ने इसके लिये चार सप्ताह का समय दिया था और सभी को अनुपालन रिपोर्ट वीडियो रिकार्डिंग और फोटोग्राफ के साथ अदातल में सौंपने के निर्देश दिये थे। इसके बाद सभी जिलों में प्रशासन हरकत में आ गया। इसके बाद सभी जिलों में प्रशासन ने एसडीएम और अन्य अधिकारियों की अगुवाई में अतिक्रमण चिन्हित करने और हटाने के लिये पृथक कमेटी बना दी। वन भूमि पर बने कुछ अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही भी की गयी।
युगलपीठ के इस आदेश के खिलाफ आज भीमताल के सुरेश सिंह नेगी और उत्तरकाशी निवासी बलबीर सिंह और ओमप्रकाश लोग अदालत पहुंचे और प्रशासन के आदेश को चुनौती दे डाली। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि वह वर्षों से संबद्ध भूमि पर काबिज हैं और प्रशासन उनका पक्ष सुने बगैर उन्हें हटाने में लगा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रशासन के कदम पर रोक लगाने की मांग की गयी। अदालत ने याचिककर्ताओं की मांग को खारिज कर दिया। साथ ही जिला प्रशासन को याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन पर नियमानुसार कार्यवाही करने के निर्देश दे दिये। यहां बता दें कि अदालत ने विगत 26 जुलाई को दिल्ली निवासी प्रभात गांधी के मुख्य न्यायाधीश को लिखे गये पत्र का संज्ञान लेते दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये निर्देश दिये। याचिकाकर्ता की ओर से नैनीताल जनपद के पदमपुरी खुटानी में सड़क किनारे किये गये अतिक्रमण के संबंध में पत्र लिखा गया था।