देहरादून। उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने आज एक बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा की, जिसमें 15 अक्टूबर को आए न्यायिक निर्णय ने राज्य बनाम कुंदन सिंह एसएलपी 2388/2019 मामले में उपनल कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दिया था। संघ के नेताओं ने बताया कि दशकों से अपने अधिकारों से वंचित रहे उपनल संविदा कर्मचारियों में इस निर्णय से उम्मीद, आत्मविश्वास और एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है, जिससे उन्हें दिवाली से पहले ही खुशियों का उपहार मिल गया है। इस निर्णय के अनुसार, कर्मचारियों को अब शोषण से मुक्ति मिलेगी। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जहां एक ओर राज्य सरकार के पास अनगिनत संसाधन थे, वहीं दूसरी ओर सीमित मानदेय वाले उपनल कर्मचारी अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे थे। सरकार ने करोड़ों रुपये प्राइवेट वकीलों की फीस पर खर्च किए, वहीं कर्मचारियों ने अपनी मेहनत से जुटाए हुए संसाधनों के साथ केस की पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की एसएलपी को खारिज कर हाईकोर्ट के आदेश को बहाल कर दिया है।
हालांकि, सरकार द्वारा पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की संभावनाएं जताई जा रही हैं, जिससे कर्मचारी नाराज हैं। संघ ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार द्वारा उपनल का उपयोग अपने फायदे के लिए किया जा रहा है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि संविधान ने उन्हें सभी अधिकार दिए हैं, लेकिन दशकों से वे अपने अधिकारों से वंचित रहे हैं। सरकार के इस रवैये को बंधुआ मजदूरी जैसा बताया गया है। संघ ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार पुनर्विचार याचिका के माध्यम से कर्मचारियों को न्यायालयों में उलझाने का प्रयास करती है, तो सभी कर्मचारी अपने स्तर पर इसका कड़ा विरोध करेंगे। इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष रमेश शर्मा, उपाध्यक्ष पूरन भट्ट, मनोज जोशी, गणेश गोस्वामी, तेजा बिष्ट और विनोद बिष्ट शामिल रहे।