नई दिल्ली/हल्द्वानी। हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र से जुड़े बहुचर्चित रेलवे भूमि प्रकरण की सुनवाई कल 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी। यह मामला पिछले तीन वर्षों से न्यायालय में लंबित है, जिसमें रेलवे अपनी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने की मांग पर अडिग है, जबकि कब्जेदार पक्ष राहत की उम्मीद लगाए हुए है। रेलवे ने पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि उसकी भूमि पर अवैध कब्जों के कारण वंदे भारत एक्सप्रेस सहित अन्य महत्वपूर्ण रेल परियोजनाओं का विस्तार प्रभावित हो रहा है। रेलवे मंत्रालय का तर्क है कि भूमि की कमी से ट्रेनों का हल्द्वानी तक संचालन संभव नहीं हो पा रहा है। वहीं, दूसरी ओर गौला नदी के कटान से रेलवे ट्रैक को भी गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। रेलवे का दावा है कि बनभूलपुरा क्षेत्र में करीब 30 एकड़ भूमि उसक़ी स्वामित्व में है, जिस पर 4365 मकानों का निर्माण अतिक्रमण के तहत किया गया है। वर्ष 2023 में उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा इन अतिक्रमणों को हटाने के आदेश के बाद क्षेत्र में व्यापक विरोध और आंदोलन देखने को मिला था।
जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान रेलवे और उत्तराखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता अभिषेक अत्रे अपना पक्ष रखेंगे। वहीं कब्जेदार पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद और प्रशांत भूषण जैसे दिग्गज वकील पैरवी करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने इस मामले पर सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता से भी विधिक राय ली है। इसके साथ ही राज्य प्रशासन की ओर से आईएएस विशाल मिश्रा, परितोष वर्मा और पंकज उपाध्याय को नोडल अधिकारी नामित किया गया है, जिन्होंने दिल्ली में अधिवक्ताओं के साथ विस्तृत चर्चा की है। पिछली तिथि में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में राज्य सरकार और रेलवे ने संयुक्त सर्वेक्षण भी पूरा कर लिया है। साथ ही प्रभावित परिवारों के पुनर्वास से जुड़ा प्रस्ताव भी तैयार किया गया है, जिसे अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। इस अहम सुनवाई पर अब पूरे उत्तराखंड और देशभर की निगाहें टिकी हैं। फैसला न केवल हजारों परिवारों के भविष्य को प्रभावित करेगा बल्कि हल्द्वानी तक रेलवे परियोजनाओं के भविष्य की दिशा भी तय करेगा।







