नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने लड़कियों की शादी की उम्र में असमानता को देखते हुए बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में संसोधन करने और इस मामले में एक समान कानून बनाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केन्द्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ ने यूथ बार एसोसिएशन आफ इंडिया की हल्द्वानी इकाई की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कुछ धर्मों में पर्सनल लॉ के नाम पर 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को शादी की अनुमति है। अध्ययनों से साफ है कि लड़कियों की कम उम्र में शादी करने से अधिकतर मामलों में मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। यह भी स्पष्ट हुआ है कि ऐसे मामलों में बच्चे की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि एक ओर केन्द्र सरकार 18 साल से कम उम्र्र की लड़कियों के यौन शोषण के मामले में यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) जैसे गंभीर कानून बना रही है दूसरी ओर 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को शादी की अनुमति प्रदान की जा रही है।
आगे कहा गया कि एक समान कानून नहीं होने से राज्यों के उच्च न्यायालय भी अलग-अलग बंटे हुए हैं और एक ही मामले में अलग-अलग आदेश पारित कर रहे हैं। याचिका मेें दिल्ली और इलाहाबाद उच्च न्यायालय का हवाला देते हुए कहा गया है कि ऐसे मामलों में दोनों उच्च न्यायालयों ने सुरक्षा देने से इनकार कर दिया जबकि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय की ओर से ऐसे ही मामलों में सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश जारी कर दिये गये हैं। उन्होंने कर्नाटक सरकार की तरह प्रदेश सरकार को इस मामले में एक कानून बनाने के निर्देश देने या उच्च न्यायालय को इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए एक आदेश पारित करने की मांग की है। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में संशोधन का मामला 2021 से लंबित है। केन्द्र सरकार अधिनियम में संशोधन को मंजूरी नहीं दे पायी है। अधिवक्ता सनप्रीत सिंह अजमानी ने कहा कि अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।