- चुनावी पारदर्शिता की दिशा में निर्वाचन आयोग की बड़ी कार्रवाई
देहरादून। उत्तराखण्ड की राजनीति में निष्क्रिय दलों पर शिकंजा कसते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने सख्त कदम उठाया है। आयोग ने 6 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आर.यू.पी.पी.) को डीलिस्ट कर दिया है, जबकि 11 अन्य दलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। यह कार्रवाई 9 अगस्त को जारी आदेश के तहत की गई, जिसमें उन दलों को पंजीकरण सूची से हटाया गया जिन्होंने पिछले छह वर्षों में न तो कोई चुनाव लड़ा और न ही भौतिक सत्यापन के दौरान उनके कार्यालयों का कोई अता-पता मिला। निर्वाचन आयोग ने डीलिस्ट हुए दलों को आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर अंतिम अपील का अतिरिक्त अवसर प्रदान किया है। वहीं, दूसरे चरण में नोटिस जारी किए गए 11 दलों को 27 अगस्त 2025 तक जवाब देने का समय दिया गया है। ये सभी दल वर्ष 2019 से अब तक किसी भी चुनाव में शामिल नहीं हुए और आयोग की आवश्यक शर्तों को पूरा करने में विफल रहे हैं।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों के खिलाफ यह कार्रवाई निर्वाचन प्रणाली में पारदर्शिता और राजनीतिक व्यवस्था के शुद्धिकरण की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। आयोग का साफ कहना है कि निष्क्रिय दल न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करते हैं, बल्कि चुनावी तंत्र में अनावश्यक बोझ भी बढ़ाते हैं। आने वाले दिनों में प्राप्त जवाबों के आधार पर इन 11 दलों का भविष्य तय किया जाएगा। उत्तराखण्ड में यह कार्रवाई राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि डीलिस्टिंग और नोटिस की यह लिस्ट कई वर्षों से केवल नाम मात्र में मौजूद उन संगठनों का चेहरा उजागर करती है, जिनका जमीनी स्तर पर कोई अस्तित्व नहीं था। निर्वाचन आयोग का यह रुख साफ संकेत देता है कि अब निष्क्रियता और पारदर्शिता की कमी को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।






